MS Dhoni Wicket Keeper: The Untold Story / एमएस धोनी विकेट कीपर: द अनटोल्ड स्टोरी

MS Dhoni Wicket Keeper: The Untold Story / एमएस धोनी विकेट कीपर: द अनटोल्ड स्टोरी

प्रीव्यू  – Preview

पिछले साल आईपीएल में हमें एक बात का एहसास हुआ कि, महेंद्र सिंह धोनी यह सिर्फ एक नाम नहीं है, यह एक इमोशन है, एक जज्बात है, क्योंकि पीले समंदर हमने हर मैदान पर उमड़ते हुए देखा था, आप चाहे मुंबई में हो, चाहे आप बेंगलोर में हो, या कोलकाता में हो, या फिर दिल्ली में हो।  हमने तों लोगो को दो-दो जर्सिया पहने हुए देखा है, एक अपनी टीम के लिए और उसके नीचे महेंद्र सिंह धोनी के लिए। जब धोनी आए तो पूरे स्टेडियम में सिर्फ माही-माही या धोनी-धोनी के नारे लगते हुए भी हमने देखा है।

अब ये हुआ कैसे?Now how did it happen?

इतनी बड़ी छवि बनी कैसे? यह सब हुआ कैसे? कैसे महेंद्र सिंह धोनी यहां तक पहुंचे हैं? कहां से शुरूआत हुई थी, यह कहानी कहांसे यहाँ आकर पहुंची है?

देखिए इस कहानी को, बहुत बहुत तरीके से देखा जा सकता है, शब्दों में इसको बांधने का प्रयास किया जा सकता है। मुख्य रूप से हम इसको चार अध्याय मैं बाट सकते है या कवर करने की कोशिश कर सकते है।

पहला अध्याय – लंबे बाल  (Chapter 1Long Hair)

यह बात है साल 2004 की जब हमने इनको पहली बार खेलते हुए देखा था, जगह का नाम था पाराद्वीप, ओड़िसा का शहर, बहुत छोटा सा वहां पे होटल था, बहुत ही साधारण सा वहां पे मैदान था, देवधर ट्रॉफी का मैच था, नॉर्थ बनाम ईस्ट। पिच ठीक-ठाक थी, कह सकते है, बहुत ही साधारण सी पिच थी, वहां पर क्रिकेट ज्यादा नहीं होती थी, अब ऐसे में नॉर्थ अच्छा खेल रही है और जीत रही है, पर तभी एक खिलाड़ी आता है और बड़ी जोर-जोर से शॉट मारना शुरू कर देता है, गेंदों को बहुत दूर दूर मारता है और सब कहते है, यह कौन खिलाडी है तो पता चलता है इस का नाम महेंद्र सिंह धोनी है। अगर ईमानदारी से कहे तों यह बात ज्यादा नोटिस भी नही हुई, कि यह खिलाड़ी कौन है? क्योंकि कभी-कभी हो जाता है, खराब सी पिच के ऊपर जब सब स्ट्रगल कर रहे थे, सो सकता हो इस भाई सूट कर रही होगी।

उसके बाद साल 2004 में जब इंडिया-ए की टीम जिंबाब्वे और केनिया के दौरे पर गई थी। उस दौरे की शुरुआत पहले जिंबाब्वे के टूर से हुई थी। वहां पर उन्हें ज्यादा खेलने का मोका नही मिला था क्योंकि टीम की पहली पसंद दिनेश कार्तिक थे।

उस समय के उनके टूर के एक साथी मशहूर क्रिकेटर आकाश चोपडा के बताये अनुसार धोनी नेट मैं बॉलिंग कर रहा है, तों आकाश चोपडा ने धोनी से पूछा “यार बोलिंग क्यों कर रहा है, बैटिंग कर, कीपिंग कर, मतलब क्या कर रहा है?” पर धोनी बोले मुझे तो बॉलिंग करनी है। एक और खास बात वो बॉलिंग कर रहे थे, दिनेश कार्तिक को!  आकाश चोपडा बोले अपने कंपीटीटर को बॉलिंग कर रहा है? इसका मतलब क्या है? धोनी फिर से जवाब देते है आप को जो करना है वो करो पर मुझे बोलिंग करनी है। क्योंकि शायद धोनी को अपने ऊपर विश्वास था कि उसका कंपटीशन किसी और से नहीं अपने आप से है करनी है। बकोल आकाश चोपडा उस दौरे पर उनकी, धोनी और श्रीराम की तिकड़ी थी, क्योंकि वो साथ बहुत टाइम स्पेंड कर रहे थे। उन लोगों ने धोनी को कहा कि बाल कटा ले, ऐसे बाल लंबे कौन रखता है? धोनी बोले मेरे तो ऐसे ही रहेंगे, बाकी दुनिया जो रक्खे सो रक्खे। आकाश चोपडा के अनुसार धोनी बहुत रिज़र्व किसम के कम बोलने वाले थे, रूम सर्विस भी नहीं ऑर्डर करते थे, कहते थे “जो मंगा रहे हो, मंगा लो, मैं वही खा लूंगा, जितने बजे उठना है, उतने बजे उठ जाना, मैं उठ जाऊंगा, जितने बजे सोना है, लाइट बंद करो, मैं सो जाऊंगा। अगर पेस्ट्री खाने का मन कर रहा है तो भाई नीचे फोन नहीं करेगा, नीचे से ऊपर लेता हुआ आके खाके चुपचाप से बैठ जाएगा। यहाँ पर हमारा पहला अध्याय – लंबे बाल खतम होता है।

अब हम जिंबाब्वे के बाद पहुंचते केनिया में, जहाँ पर धोनी को खेलने का मौका मिला। बकोल आकाश चोपडा भारत के पूर्व मशहूर क्रिकेटर के अनुसार पहली बार जब उनोहने धोनी को बैटिंग करते देखा तो, उन्होने पहले एक स्वीप मारा, फील्डर जो था वो फाइन लेग का अंदर रखा हुआ था, स्वीप मारा तेज गेंदबाज को, बोलर था पाकिस्तान का इफ्तिकार, वो बहुत तेज बाल डालता था। उसके बाद पाकिस्तान के कप्तान ने उस वाले फील्डर को पीछे भेज दिया और थर्ड मैन को अंदर ले आया, वो पहला मोका था जब किसी फ़ास्ट बोलर को रिवर्स स्वीप पे चोका मारते हुए देखा था। वो इंडिया, पाकिस्तान और केनिया की ट्राई सीरीज थी वहां पर धोनी का हुआ था पदार्पण।

दूसरा अध्याय – द फिनिशर (Chapter 2- The Finisher)

अब शुरू होता है कहानी का दूसरा भाग दूसरा, “द फिनिशर”, फिनिशर के रोल शुरुआत कैसे होती है, साल 2004 मैं मोका मिलता है, 2007 में T20 की कप्तानी मिलती है, साल 2008 में उनको आईपीएल में बहुत बड़ी राशी में ख़रीदा जाता है। चेन्नई उनको खरीद लेती है, और उसके बाद डिवेलप होना शुरू होता है “महेंद्र सिंह धोनी द लिमिटेड ओवर्स क्रिकेटर” जो मैचेस फिनिश करता है। अब धोनी की तुलना ऑस्ट्रेलिया के माइकल बेवन से होने लगती है। माइकल बेवन “वाज वन ऑफ द बेस्ट” उनसे बेहतर बहुत कम लोग हैं, जिन्होंने फिनिशिंग की है, पर माइकल बेवन की खासियत क्या थी, सिंगल्स डबल्स-भागना, दैट वाज हिज गेम क्योंकि आते भी ऑस्ट्रेलिया से थे, और महेंद्र सिंह धोनी के पास क्या था, सिंगल्स-डबल्स भागना और चक्के-चौके लगाना अंत तक नाबाद रहना और गेम अवेयरनेस वाज एज गुड एज माइकल बेवन।  धोनी के परफॉर्मेंसेस एक के बाद एक जुड़ते जाते हैं, तो आपका ना वो एक “aura” बनना शुरू हो जाता है, कि महेंद्र सिंह धोनी क्या फिनिशर है? ये जब तक है मैदान पे, गेम फिनिश नहीं हुआ है, ये गेम को डीप लेकर जाता है, इसका खेलने का तरीका अलग है, ये अलग करके दिखा देगा, ये मैच जिता देगा और एक-एक करके पहले कभी युवराज के साथ वो पार्टनरशिप करते हैं, कभी खुद अकेले रह जाते हैं, पर काम करते जाते हैं गेम को डीप, डीप ले जाकर, वो अपने अंदाज में मैचेस जिताना शुरू करते हैं और एक नहीं बहुत जिताते हैं।

क्रिकेट की जब भी लिखी जाएगी, किताब का आखिरी अध्याय, द फिनिशिंग चैप्टर वो इन्हीं पे लिखा जाएगा और शायद ये खुद ही ही लिखेंगे क्योंकि इनसे बेहतर फिनिशर क्रिकेट के इतिहास में कोई नहीं आया है।

एक चीज कई बार कंपैरिजन होता है, कि जरूरी नहीं होता, फिनिशर को पांच पे आना है,  लेकिन मान लिया, ऊपर वाले लोग भी होते हैं, चाहे वो सचिन तेंदुलकर हो, विराट कोहली हो, रोहित शर्मा हो, वो भी फिनिश कर देते हैं, या नहीं करते हैं। उनके लिए ना थोड़ा सा आसान होता है जो नंबर पांच पे, या नंबर चार पे या नंबर छ पे आता है उसके लिए गेम खत्म को कर करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि ना सेटल होने का टाइम नहीं मिलता और अगर आप सेटल नही हुए है, आप गेम के लय को पूरी तरह से पढ़ नहीं पाए हो या फिर पढ़ भी जाओगे तो ऐसे में फिनिश करना, यह बहुत बड़े खिलाडी होने का सबूत है। “महेंद्र सिंह धोनी द फिनिशर” यह उनकी खुबसूरत कहानी का दूसरा अध्याय है।

तीसरा अध्याय – द लीडर, द कैप्टन (Chapter 3- The Leader, The Captain)

महेंद्र सिंह धोनी द लीडर, महेंद्र सिंह धोनी द कैप्टन –  यह अपने आप में एक बहुत बड़ा अध्याय है। नेलसन मंडेला जी ने कहा था, कि लीडरशिप के कई तरीके होते हैं, “यू लीड फ्रॉम द फ्रंट”, “यू लीड फ्रॉम बिहाइंड”, यू लीड बाय एग्जांपल” तो ऐसे कई तरीके होते हैं, इनके जो तरीके हैं वो बड़े अलग तरीके से इन्होंने अपनी कप्तानी की है, पहली बात तो क्या-क्या हासिल किया है? क्या हासिल नहीं किया! मतलब, क्या ही रह गया है?

हासिल इतना कुछ किया है, T20 वर्ल्ड कप ये जीतते हैं, यह तब कप्तान बनाए जाते हैं जब किसी को उम्मीद नहीं थी, कि ये कप्तान बनेगा, हो सकता है शायद टीम में भी उतनी रिस्पेक्ट नहीं रही होगी, क्योंकि उस टाइम, उस समय कंटेंडर्स थे, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, हरभजन सिंह, यह सब उस टीम का हिस्सा थे, लेकिन इन सब के बावजूद वो कप्तान बने और उनकी कप्तानी में टीम ने साल 2007 में T20 वर्ल्ड कप जीता। उसके बाद आईपीएल होता है, महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में चेन्नई सुपर किंग्स आईपीएल 2010 में पहली ट्रॉफी जीतती है। फिर भारतीय क्रिकेट टीम साल 2011 विश्व कप  फिर जीतती हैं, इन की कप्तानी में  2 अप्रैल 2011 को और महेंद्र सिंह धोनी बड़े स्टाइल से 2011 विश्व कप  का अंत करते है। उसके बाद 2013 की आप चैंपियंस ट्रोफी भी जीतते हैं और आईपीएल के अंदर चेन्नई ट्रोफी के बाद ट्रॉफीज जीतती रहती है।

कप्तानी का स्टाइल

पॉइंट 1 – अब महेंद्र सिंह धोनी बन चुके है, कप्तान पार एक्सीलेंस! कप्तानी का स्टाइल क्या है? इनकी कप्तानी का स्टाइल इनका बड़ा विचित्र है, और वो इस कप्तान को अलग बनाती है क्योंकि एक चीज उन्होंने सीखी कि मैं सबसे अच्छा परफॉर्म कब करता हूं, जब मैं कंफर्टेबल होता हूं, जब मैं रिलैक्स्ड होता हूं, जब मुझ पर कोई एक्स्ट्रा दबाव नहीं होता है। इस लिए महेंद्र सिंह धोनी ने कभी किसी पे गैरजरुरी (अननेसेसरी) दबाव नही डाला, इसके साथ यह पहचानना की इस खिलाडी की ताकत क्या है? इस खिलाडी की कमजोरी क्या है? ताकत के ऊपर फोकस करके, उसको जितना बेहतर बना सकता हूं, बना दूं। कमजोरियों को जितना मैं ढक सकता हूं, जैसे पोजीशन को लेकर या थोड़ा और कॉन्फिडेंस देकर, जब कभी फॉर्म खराब हो जाए तो प्यार से बात कर के ऐसी चीजों पर बहुत फोकस किया। महेंद्र सिंह धोनी खिलाडियो को उनका बेस्ट परफॉरमेंस देने के लिए पूरा सहयोग दिया, उन्होंने रविंद्र जाडेजा से लेकर दीपक चाहर, अंजिक्य रहाने से लेकर शिवम दुबे तक, लिस्ट बहुत लंबी है। महेंद्र सिंह धोनी ने हाथों से खिलाड़ियों को बनाया है, संभाल कर–सजो कर, जैसे साल 2014 में विराट कोहली के ऊपर दबाव था, तब महेंद्र सिंह धोनी ने विराट कोहली से कहा “यू बैट, आई एम विद यू”। महेंद्र सिंह धोनी के दिमाग में एक चीज बड़ी क्लियर थी, कि मुझे टीम बनानी है और टीम खिलाड़ियों से ही बनती है और खिलाड़ी तभी अच्छा करते हैं जब उनको कॉन्फिडेंस मिलता है और यह काम उन्होंने लगातार किया, जहां पर भी कप्तानी की, जब भी कप्तानी की।

पॉइंट 2हमेशा पीछे से कप्तानी की है, मतलब कि खिलाडी को कहा “तुम जाओ, यू फ्लोरिश, मुझे क्रेडिट नहीं चाहिए, मेरे को अपनी टीम जितानी है, क्रेडिट तुम रखो,  ट्रॉफी के पास तुम रहो, ट्रॉफी तुम उठाओ और मैं कोने में कहीं पे छुप के खड़ा हो जाऊंगा। महेंद्र सिंह धोनी कभी किसी से कोई क्रेडिट नहीं मांगते हैं, लेकिन दुनिया उन्हें क्रेडिट देती है। यह भी उनकी कप्तानी का स्टाइल है। वो गेम को समझते है, वन डे और T20 क्रिकेट, मतलब वाइट बॉल में, वो पार एक्सीलेंस कप्तान है, उनसे बेहतर कोई नहीं है।

टेस्ट क्रिकेट में थोड़ी सी डिफेंसिव कप्तानी की है, कारण यह हो सकता है कि उनके पास बॉलिंग डिपार्टमेंट में उतनी रिसोर्सेस नहीं थे। टेस्ट क्रिकेट में धोनी ने कई बार गेम को ड्रिफ्ट हो जाने दिया, ऐसा नहीं था कि हमेशा गेम को कंट्रोल करते थे या फिर वो हमेशा आक्रमक अंदाज में गेम जीतने का प्रयास करते थे, असल में वो एक एक व्यावहारिक कप्तान थे। यह उनकी खुबसूरत कहानी का तीसरा अध्याय है।

चौथा अध्याय – द कल्ट (Chapter 4- The Cult)

अंतिम अध्याय, जो इनकी कहानी में है वो है, “महेंद्र सिंह धोनी द कल्ट”। इस खिलाड़ी को जितना प्यार, जितना सम्मान, जितना आदर जैसे-जैसे करियर आगे बढ़ता गया, उतना ही मतलब अलग चरम पे जाता गया। अमूमन क्या होता है, कि जैसे आप कई आप लिंगरिंगऑन करते है, कि आपको लगता है कि रिस्पेक्ट जा रही है पर उसका खेल को छोड़ने का मन नहीं कर रहा, वो छोड़ नहीं रहा है, वो खेलता ही जा रहा है, पर महेंद्र सिंह धोनी ने नही किया। साल 2015, ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर, धोनी ने कहा कि “बस मेरा हो गया टेस्ट क्रिकेट, मैं नहीं खेल रहा” और विराट तुम टीम को आगे ले के जाओ, मेरी अब टीम को कोई जरूरत नही है और ना ही मुझे कोई रिकॉर्ड्स बनाने है। उस समय महेंद्र सिंह धोनी दो बड़े रिकॉर्ड्स के करीब थे। एक रन्स का लैंडमार्क था, दूसरा नंबर टेस्ट मैच का लैंडमार्क था। उन्होंने कहा, रखो लैंडमार्क अपने पास और मेरी टीम को अब मेरी जरूरत नहीं है, क्योंकि ये सीरीज मैं जिता नहीं पाया हूं और अगली सीरीज नहीं भी जिता पाऊंगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा?

महेंद्र सिंह धोनी की खास बात यह है, कि इनको पता है कब क्या करना है, इनका स्टाइल ही अलग है, एक दिन अचानक इन्सटाग्राम पे पोस्ट डाल दी के में रिटायर हो रहा हूँ, बस खेल खत्म! रिटायरमेंट ले ली, इसे कहते है सादा जीवन, उच्च विचार।

एक और बात, चेन्नई ने जिस तरीके से उनको प्यार दिया है, जिस तरीके से उनको अडॉप्ट किया है, ऐसा बहुत कम जगह आपको देखने को मिलता है। ऐसा बहुत कम हुआ है किसी खिलाडी के साथ इतने शहर जुड़ जाये। महेंद्र सिंह धोनी वहां चेन्नई के नहीं है, पर ऐसा कभी लगा नहीं, कि वह चेन्नई के नहीं है, ऐसा लगता है जैसे वह पैदा ही वही हुए होंगे, चेन्नई की किनी गलियों में, क्योंकि वो आउटसाइडर है, वो रांची से आते हैं पर बहुत प्यार मिला है, धोनी को चेन्नई में। महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी पेर्फोर्मंसस के साथ उस मिले प्यार और सम्मान के साथ पूरा न्याय करने की कोशिश है। महेंद्र सिंह धोनी ने चेन्नई की टीम को अपने गले से लगाया और टीम को इतना जिताया और इतना अच्छा किया इनफैक्ट अब तो आप ये कह सकते हैं, उनकी पॉपुलरटी, उनको जो प्यार मिलता है, जो आदर, जो सम्मान मिलता, इस से पहले सिर्फ सचिन तेंदुलकर को मिलते देखा गया है। सचिन तेंदुलार्क वर्ल्ड में कहीं पर भी जाए, कहीं पर भी चले जाए, ऐसा लगता था कि होम ग्राउंड पर खेल रहे हैं। उनको हमेश स्टैंडिंग ओवेशन मिलती थी।

अगर आप ने यह अनुभव नही किया है तो आप कृपया एक टिकट आईपीएल का खरीदिये, जिस किसी भी मैच में धोनी खेल रहे हो, मैच किसी भी शहर में हो रहा हो, किसी भी समय  हो रहा हो, दोपहर का हो, रात का हो, टीम अच्छा कर रही हो, खराब कर रही हो, एक टिकट लेके मैच देखने जाइएगा, लेकिन जाइएगा प्लीज पीली जर्सी में, नही तो आप माइनॉरिटी में महसूस करेगें और फिर देखिएगा महेंद्र सिंह धोनी का जलवा, वो जो प्यार है आप यकीन नही कर पावगे, इसी प्यार ने उन्हें “द कल्ट हीरो” बनाया है। अभी महेंद्र सिंह धोनी खेल रहे है, पर आज से 50 साल बाद, जब मुड़ के भारत अपनी क्रिकेट को देखेगा इतिहास के पन्नों को में, थोड़ा सा पीछे की तरफ मुड़कर, तो फिर आप पाएंगे, “द ग्रेट सचिन तेंडुलकर”, “द ग्रेट महेंद्र सिंह धोनी”, “द ग्रेट विराट कोहली”, “द ग्रेट सुनील गावस्कर”, “द ग्रेट कपिल देव”। आपको ये फोर चैप्टर्स कैसे लगे!

आज के लिए इतना ही है,  आप को, अपना कीमती समय देने लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

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